Tuesday 26 June 2012

माँ ....तुम यहीं कहीं हो

माँ ....
मैं तुम्हें खोज लूँगा
तुम यहीं कहीं हो
मेरे आस -पास .... ॥

आपकी अस्थियां
प्रवाहित कर दी थी मैंने
गंगा में ॥
भाप बन कर उड़ी
गंगा -जल
और फिर बरस कर
धरती में समा गई

मैं सुबह उठकर
धरती को प्रणाम करता हू
इसे चन्दन समझ
माथे पर तिलक लगाता हू ॥

 ऐसा कर
आपका
प्यार और वात्सल्य
रोज पा लेता हू .. माँ ॥
-------------बबन पाण्डेय

8 comments:

  1. आज जाना ... धरती माँ को क्यों प्रणाम करते है

    ReplyDelete
  2. माँ के बराबर दुनिया में कोही नहीं!

    ReplyDelete
  3. मार्मिक है भाई

    ReplyDelete
  4. उत्कृष्ट प्रस्तुति |

    ReplyDelete
  5. भावमय करते शब्‍द ... मां को नमन

    ReplyDelete
  6. आज तलक वह मद्धम स्वर
    कुछ याद दिलाये कानों में !
    मीठी मीठी लोरी की धुन,
    आज भी आये, कानों में !
    आज जब कभी नींद ना आये,कौन सुनाये मुझको गीत !
    काश कहीं से मना के लायें , मेरी माँ को , मेरे गीत !

    ReplyDelete