Thursday 31 May 2012

धूल

अभी कल की ही बात है
थोडा सा रद्दी कपडा
मैंने भिगोया पानी में
पोछ ( साफ़ ) डाले
सारे धूल
जो जमे थे
मेरे घर के
खिडकियों के शीशे पर //
आज धूप भी खिलकर आई थी
कमरे के अंदर //

काश !!!
कितना अच्छा होता
एक भींगे कपडे से
मैं उस धूल को पोछ पाता
जो मैंने
जिंदगी के रेस में
साथ चलने वालों के
चेहरों पर फेकें हैं//

Tuesday 15 May 2012

सुविधाभोगी

(प्रस्तुत कविता हिंदी के विद्वान कवि प० राम दरश मिश्र द्वारा सम्पादित पत्रिका ' नवान्न ' के द्वितीय अंक में प्रकाशित है, मेरी इस कविता को उन्होनें गंभीर कविता का रूप दिया था )

न तो ---
मेरे पास
तुम्हारे पास
उसके पास
एक बोरसी है
न उपले है
न मिटटी का तेल
और न दियासलाई
ताकि आग लगाकर हुक्का भर सकें ॥
और न कोई हुक्का भरने की कोशिश में है ।

सब इंतज़ार में है
कोई आएगा ?
और हुक्का भर कर देगा ।
आज !
हर कोई
पीना चाह रहा है
जला जलाया हुक्का ॥

Saturday 5 May 2012

भगदड़

भगदड़ क्यों मची  थी 
मुझे नहीं पता 
न जानने  की कोशिस की मैंने 
 लोगों ने कहा -भागो! भागो!
शामिल हो गया मैं भी //

बाद में पता चला 
गिर गया था कोई भूख से 
खून भी निकल रहा था  
भगदड़ इस बात पर मची थी 
किसी ने गोली चलाई है//

धत तेरे  की .....
माँ  ने कितनी बार सिखाया था 
जब कोई कहे 
तुम्हारा कान कोई  कौया  ले गया 
तो बेटा !
कौया को नहीं 
अपने कान को देखना